इस्कॉन न्यू टाउन कोलकाता में गौर पूर्णिमा उत्सव

भगवान कृष्ण के भक्त हमेशा आनंद में रहते हैं। वे साल में कई त्योहार मनाते हैं।  सभी त्योहारों में, गौर पूर्णिमा यानी श्री चैतन्य महाप्रभु का प्रकट दिन ब्रह्म-माधव-गौड़ीय सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। 


इस शुभ दिन पर, हमें भगवान चैतन्य के जीवन पर एक नाटक करने का अवसर मिला। प्रभु की सेवाओं में सक्रिय भागीदारी हमें भगवान के  करीब ले जाती है। इसलिए, कुछ भक्तों के साथ मिलकर हमने नाटक प्रस्तुत करने के बारे में सोचा। हम में से किसी को भी नाटक में भाग लेने का पूर्व का कोई खास अनुभव नहीं था। लेकिन फिर भी हमने सोचा, ‘हम प्रयास करते हैं और भगवान श्री कृष्ण निश्चित रूप से हमारी मदद करेंगे। ‘ 

हमने चैतन्य महाप्रभु का वह लीला चुना जिसमे वो चाँद काज़ी का ह्रदय परिवर्तित करते हैं।

काजी ने नवद्वीप में संकीर्तन पर प्रतिबंध लगा दिया था और महाप्रभु ने इस फैसले के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था।

ऐसा कहा जाता है कि उस विरोध प्रदर्शन में लगभग 1 लाख लोगों ने भाग लिया था।


वास्तव में, यह भारत का पहला सविनय अवज्ञा आंदोलन था, यहाँ तक की यह दुनिया का पहला सविनय अवज्ञा आंदोलन भी हो सकता है।

हमने स्क्रिप्ट तैयार की। चैतन्य महाप्रभु, नवद्वीप के भक्त, चाँद काज़ी और काज़ी के सैनिकों के चरित्र का चुनाव किया। हमने गौर पूर्णिमा से एक दिन पहले कई बार अभ्यास किया। अगले दिन यानी गौर पूर्णिमा के दिन हमने जल्दी आकर और अभ्यास करने  का फैसला किया।

नाटक का अभ्यास

हमने बैकग्राउंड म्यूजिक और गानों की व्यवस्था की। हमें नाटक के लिए पोशाकें भी मिलीं। एक भक्त ने मशालें भी तैयार की। पहले हमने सोचा था कि हम मशाल जलाएंगे, लेकिन चूंकि कार्यक्रम मंदिर के हॉल के भीतर था, इसलिए मशाल जलाना खतरनाक होता, इसलिए हमने इस विचार को छोड़ दिया।

छोटे बच्चे भी महाप्रभु के जीवन पर नाटक कर रहे थे।

गौर पूर्णिमा कार्यक्रम की शुरुआत गौर निताई के सुंदर विग्रह के अभिषेक से हुई। श्री गौर निताई को गंगा जल, फलों के रस, फूल और अन्य पवित्र वस्तुओं से स्नान कराया गया। अभिषेक के समय सभी भक्त हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन कर रहे थे।

अभिषेक के तुरंत बाद बच्चों का नाटक था। बच्चों ने शानदार प्रदर्शन किया। रंगबिरंगे परिधान पहने, उन्होंने महाप्रभु के बचपन के लीलाओं पर नाटक प्रस्तुत किया जो सभी के दिलों को छू गए।

अब हमारी बारी थी।

हमने प्रार्थनाएँ कही और भगवान से आशीर्वाद मांगा ताकि हम भक्तों को निराश न करें।

हमारे नाटक की शुरुआत उस दृस्य से हुई, जिसमें हमने दिखाया कि कैसे भक्त नवद्वीप में भगवान कृष्ण की भक्ति आनंद के साथ कर रहे थे। एक परिवार पवित्र नामों का जाप कर रहा था। महिलाओं का एक समूह प्रभु के लिए माला तैयार कर रहा था। कुछ भक्त शास्त्रों पर चर्चा कर रहे थे।

एक भक्त सभी को आरती के लिए आमंत्रित करने आता है। जब भक्त आरती कर रहे थे, चाँद काज़ी के दो सैनिक प्रवेश करते हैं। वे दर्शकों के पीछे से प्रवेश करते हैं।

ऊंची आवाज में सैनिक सभी को धमकी देते हैं कि वे कृष्ण के नामों का जाप करें। वे भक्तों के पास आते हैं और उन्हें तुरंत आरती रोकने के लिए कहते हैं। उन्होंने उन्हें चेतावनी भी दी कि यदि वे आदेश की अवहेलना करते हैं तो उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया जाएगा और उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी। जाने से पहले उन्होंने एक मृदंग भी तोड़ा।

हमने मृदंग का उपयोग नहीं किया बल्कि मिट्टी के बर्तन का उपयोग किया। मृदंग एक पवित्र वस्तु है और किसी भी परिस्थिति में उसका अनादर नहीं किया जाना चाहिए।

श्रद्धालु एकदम सदमे में थे। भक्तों ने आपस में चर्चा की और निष्कर्ष निकाला, “जीवन का उद्देश्य कृष्ण के पवित्र नामों का जप करना है। अगर हम ऐसा नहीं कर रहे हैं, तो हमारे शरीर का क्या फायदा। हमें अपना जीवन त्याग देना चाहीए। ” सभी दुखी थे।

फिर चैतन्य महाप्रभु प्रवेश करते हैं।

भक्तों को दुखी देखकर वह आश्चर्यचकित हैं। वह उनसे पूछतें हैं, “क्या हुआ? आप सभी इतने दुखी क्यों हैं? ” भक्त अपनी व्यथा सुनाते हैं। आंखों में आंसू के साथ वे कहते हैं, “चूंकि अब हम कृष्ण की भक्ति करने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, इसलिए हमें अनुमति दें ताकि हम खुद को गंगा में डुबाकर अपना जीवन समाप्त कर सकें।

महाप्रभु भक्तों की विनती सुनकर भावुक हो जाते हैं।

फिर वो कहते हैं, “पूरे ब्रह्मांड में कोई नहीं है जो संकीर्तन को रोक सकता है। संकीर्तन जारी रहेगा। हम आदेश की अवहेलना करेंगे।”

भक्त हर्षित हो जाते हैं लेकिन कुछ भक्त फिर भी पूछते हैं, “क्या यह संभव हो सकता है?”

महाप्रभु कहते हैं, “क्या आपको मेरे शब्दों पर विश्वास नहीं है? क्या आपको मुझ पर भरोसा नहीं है?” सभी भक्त कहते हैं, “महाप्रभु आप हमारे उद्धारकर्ता हैं। आप हमारी जिंदगी हैं। हम आप पर विश्वास करते है। हमें आप पर पूरा भरोसा है।”

महाप्रभु ने उन्हें मशालें तैयार करने, मृदंगों और करताल की व्यवस्था करने को कहा। नवद्वीप के सभी भक्तों को विरोध मार्च में आमंत्रित करने को कहा।

इसके बाद महाप्रभु जाते हैं। भक्त तैयारी शुरू करते हैं। और बैकग्राउंड में खूबसूरत भजन बजता है।

भज गौरांगा कह गौरांगा लाह गौरांगरा नाम रे

जे जना गौरांग भजे, सेई (होय) अमरा प्राण रे

भक्त फिर विरोध मार्च निकालते हैं। महाप्रभु के नेतृत्व में मशाल और मृदंग और करताल के साथ वे जोरजोर से नवद्वीप की सड़कों पर संकीर्तन करते हैं और नृत्य करते हैं।

लोग चाँद काज़ी के घर की ओर जाते हैं।

चाँद काज़ी इस बात से अवगत नहीं था कि लोग, जिनमें से कुछ बेहद गुस्से में थे, उसकी घर की ओर मार्च कर रहे हैं।

एक सैनिक उसे खबर देने के लिए दौड़ता हुआ आता है। शुरू में काजी ने उस पर विश्वास नहीं किया। लेकिन फिर वह भारी भीड़ को संकीर्तन करते हुए देखता है। वह दौड़ता है और अपने घर के अंदर छिप जाता है। भक्त अब उसके दरवाजे पर हैं।

महाप्रभु एक भक्त को अंदर भेजते हैं। भक्त घर में प्रवेश करता है और काज़ी को बाहर आने के लिए मजबूर करता है। काजी बेहद भयभीत है। कुछ भक्त चिल्लाते हैं, “इसे दंड दो। इसे सजा दो।

महाप्रभु उन्हें शांत करते हैं। और काजी से पूछतें हैं, “लगता है आप मुझे देखकर खुश नहीं हैं। आपने मेरा स्वागत नहीं किया। आप अपने घर के अंदर छिप गए।”

काजी लड़खड़ाती आवाज़ में कहता है, “नहीं। नहीं यह सत्य नहीं है। मैंने देखा आप गुस्से में हैं। आपके साथ आने वाले सभी लोग गुस्से में हैं। तो मैंने सोचा कि जब तक आपका गुस्सा कम न हो जाए, मुझे अंदर ही रहना चाहिए। जैसे ही मैंने देखा आप शांत हो गए हैं, मैं आपका स्वागत करने के लिए तुरंत बाहर गया।

फिर काज़ी कहता है, “नीलाम्बर चक्रवर्ती, आपके नाना, मुझे बहुत प्यार करते थे। मैं उन्हें चाचा कहता था और वो मुझे अपने पुत्र की तरह स्नेह करते थे। उस रिश्ते से तो आप मेरे भांजा हुए। और मामा और भांजा आपस में झगड़ा नहीं करते। जब कभी मामा नाराज होता है तो भतीजा उसे शांत करता है। और जब भतीजा नाराज होता है तो मामा बुरा नहीं मानता बल्कि उसे शांत करता है।”

महाप्रभु तब पूछते हैं, “एक मुस्लिम शासक के रूप में आपने कल संकीर्तन को रोकने की कोशिश की थी। लेकिन आज जब लोग सड़कों पर जाप और नृत्य कर रहे थे तब आपने कुछ नहीं किया?

काज़ी कुछ कहना चाहता है। वह महाप्रभु से पूछता है कि क्या हम अंदर जाकर बात सकते हैं। एक भक्त क्रोधित स्वर में कहता है, “नहीं। सारी चर्चा यहीं होगी।”

महाप्रभु कहते हैं, “ये भक्त अपने हैं। आप इनके सामने सब कुछ कह सकतें हैं।”

काज़ी कहता है, “कल, मेरे जीवन में कुछ अविश्वसनीय हुआ। सपने में मैंने एक अध्भुत जीव देखा। मैं समझ नहीं पा रहा था कि वह कौन है। वह आकार में बहुत बड़ा था। उसका आधा शरीर शेर का था और आधा आदमी का था। वो मेरे शरीर के ऊपर बैठा था और अपने बड़े और तीखे नाखूनों से मेरी छाती को चीरने की कोशिश कर रहा था। उसके बड़े नुकीले दांत थे। उसके मुँह से आग निकल रही थी। वह गर्जना कर रहा था और चिल्ला रहा था, ‘तुमने नवद्वीप में संकीर्तन को रोकने की हिम्मत की। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुए एक मृदंग को तोड़ने की। यदि तुम ऐसा फिर से करते हो, तो मैं तुम्हें  चीर दूंगा। मैं तुम्हें ही नहीं बल्कि तुम्हारे परिवार के सभी सदस्यों को भी मिटा दूंगा। ऐसा फिर कभी करने की कोशिश नहीं करना।’  उसके नाखूनों के निशान अभी भी मेरी छाती पर हैं।

महाप्रभु फिर पूछते हैं, “इसके अलावा भी कुछ हुआ?” काज़ी कहता है, “हाँ। कल जब मेरा एक सैनिक संकीर्तन को रोकने के लिए एक घर में गया, तब कहीं से आग की लपटें गयी जिससे उसका दाढ़ी और चेहरा जल गया।

काजी महाप्रभु से भक्तों को परेशान करने के लिए क्षमा मांगता है।

आंखों में आंसू के साथ वो कहता है, “वेद में भगवान नारायण की महिमा का गुणगान किया गया है। सभी हिंदू उस नारायण की पूजा करते हैं और उसे हरि भी कहते हैं। अब मैं समझ गया हूँ कि आप वही हरि हैं। आप परमपिता परमात्मा हैं। आप गौरहरि हैं।”

काजी गौरहरि के चरणों में गिर जाता है। गौरहरि प्यार से उसे उठातें हैं और कहतें हैं, “आप बहुत भाग्यशाली हैं। आपने हरि, कृष्ण और नारायण के नामों का जप किया। आपके सभी पाप समाप्त हो गए। अब आप शुद्ध हैं।”

महाप्रभु काज़ी से कहते हैं, “मैं एक निवेदन करना चाहता हूँ। आप वादा करें कि आप इस संकीर्तन को कभी नहीं रोकेंगे।”

अपने गलती के लिए माफी मांगते हुए काज़ी कहता है “अब से कोई भी नवद्वीप के इस पवित्र धाम में कभी भी संकीर्तन को नहीं रोकेगा। भविष्य में मेरे वंशज भी नहीं। हम सभी मिलकर संकीर्तन में भाग लेंगे।”

भक्त हर्षपूर्वक बोलते हैं, ‘हरिबोल! हरिबोल! जय गौरांगा’

अंत में “हरी हराये नमः कृष्ण यादवया नमः यादवया माधवाय केसवाया नमः” का संगीत बजता है और सभी आनंद में नृत्य करते हैं

नाटक के बाद श्री चैतन्य महाप्रभु के जीवन और शिक्षाओं पर एक विशेष कथा होती है। कथा के बाद आरती और अंत में सभी भक्त प्रसाद का आनंद लेते हैं।

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